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मायाचारी मनुष्य ना इस लोक में सुख पाता है ना परलोक में – डा.आदर्श ज्योति श्रीजी

रत्न पोरवाल स्थानक में हो रहे जैन साध्वी के नियमित प्रवचन

नाहर टाइम्स@शाजापुर। मायाचारी मनुष्य को ना इस लोक में सुख मिलता है ना उसकी परलोक में गति सुधरती है। तत्वार्थ सूत्र में उसके रचियता आचार्य उमास्वाति ने कहा है कि मायाचारी करने से तिर्यंच आयु का आस्त्रव होता है निकाचित कर्मों का बंध होता है। मायाचारी व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता है वह इस भव तथा पर भव में भी सदा दुखी रहता है और संसार में परिभ्रमण करता रहता है।

उक्त आशीर्वचन दक्षिण ज्योति प.पू.डाॅ.आदर्श ज्योतिश्रीजी म. सा. ने स्थानीय कसेरा बाजार स्थित श्रीरत्न – पोरवाल जैन स्थानक में प्रतिदिन सुबह 8 से 9 बजे तक आयोजित नियमित प्रवचन माला के दौरान बुधवार को “एक चेहरे पर अनेक चेहरे” शीर्षक पर प्रवचन उपस्थित समाजजनों को प्रदान किए। इस दौरान मधुर भाषी पूज्य साध्वी डॉ.आत्म ज्योतिश्रीजी म.सा. एवं संगीत प्रेमी पूज्य साध्वी डॉ.रजत ज्योतिश्रीजी म.सा.भी पाट पर विराजित रहे। प्रवचन के दौरान साध्वी श्री ने मायाचारी मनुष्य का वर्णन करते हुए कहा कि एसा व्यक्ति जो अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए कुटिलता पूर्वक व्यवहार करता है। ऐसा व्यक्ति जो धूर्त है, प्रपंची है, चालाक है, मायावी है, कपटी है। जिसमें मन – वचन – काय की वक्रता है, जो छल करता है, जो कंस वृत्ति, कैकयी वृत्ति या शकुनि वृत्ति वाला है, धोकेबाज है, कहता कुछ है और करता कुछ है, अंदर कुछ और बाहर कुछ होता है, वह होता कुछ है और दिखाता कुछ है, दोहरे मापदण्ड वाला, गिरगिट की तरह रंग बदलेने वाला, सांप की तरह टेड़ा-मेड़ा चलने वाला, एक चेहरे पर कई मुखोटे लगाने वाला, अवसरवादी होता और षड्यंत्रकारी होता है। तत्वार्थ सूत्र के अनुसार मायाचारी कहलाता है। इस प्रकार मायाचार से व्यक्ति भले ही धन अर्जित करने, सम्मान प्राप्त करने तथा तुच्छ इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए अवसरवादी होकर निजी लाभ लेने के लिए अपनों को, मित्रों को भी धोखा देने में नहीं हिचकता है। रिश्ते-नातों को भी दांव पर लगाने से बाज नहीं आता है। ऐसे अनेकों उदाहरण हम प्रतिदिन समाचार पत्रों में नियमित रुप से पढ़ते और सुनते हैं। एसा करने वाला मायाचारी यह नहीं समझ पाता है कि वह दूसरों को नहीं’ स्वयं को धोखा दे रहा है। ऐसे मायाचारी इस सत्यता से भी अनभिज्ञ रहते हैं कि वे भ्रम में जी रहे हैं। उन्हें पश्चाताप का भी अवसर प्राप्त नहीं होता है। मायाचारी इस भव तथा पर भव में भी सदा दुखी रहता है और संसार में परिभ्रमण करता है। अतः भगवान ने फरमाया है, कि धर्म उनमें टिकता है जो निश्छल हैं, जो सीधे हैं, भोले हैं, सरल हैं, सहज है। ऐसा व्यक्ति ही मोक्षगमन करता है। वस्तुत: जो बच्चा भोला-भाला है वो माँ और महावीर दोनों को प्यारा होता है। अचारांग सूत्र में भी कहा गया है। “अप्पा सो परमप्पा” यानि आत्मा ही परमात्मा है। जैसे आप अन्दर हो वैसे ही बाहर भी रहो तो आपकी आत्मा भी परमात्मा हो सकती है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।

Nahar Times News

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