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तुच्छ, दरिद्र और कृपण हृदय में परमात्मा का आगमन नहीं होता -आचार्य जिनमणिप्रभसूरि

परमात्मा पार्श्वनाथ प्रभु का च्यवन कल्याणक मनाया गया

नाहर टाइम्स@हातकणंगले। श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ जिन मंदिर एवं दादावाड़ी की अंजनशलाका प्रतिष्ठा के दूसरे दिन परमात्मा पार्श्वनाथ प्रभु का च्यवन कल्याणक मनाया गया।

इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए खरतरगच्छाधिपति आचार्य जिनमणिप्रभसूरिजी ने कहा कि शास्त्रकार कहते हैं कि तीर्थंकर परमात्मा जैसी महान् आत्मा का जन्म किसी तुच्छ, दरिद्र या कृपण कुल में नहीं हो सकता। अर्थात् जिसका हृदय तुच्छ हो, जिसका हृदय दरिद्र हो और जिसका हृदय कृपण हो, उस हृदय में परमात्मा का पदार्पण नहीं हो सकता। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हम परमात्मा को अपने अन्तर में बुलाना चाहते हैं तो पहले अपने हृदय को स्वच्छ और पवित्र बनाना होगा साथ ही गुणों का विकास करना होगा। आचार्य श्री ने कहा कि तुच्छ वह है, जो छोटी-छोटी बातों को अपने मन में रखता है और उस आधार पर क्रोध-मान आदि कषाय करता है। यदि हमें अपने जीवन में शांति और सद्भाव चाहिये, तो छोटी छोटी बातों को भूलना सीखो। उन्होंने कहा कि दरिद्र वह नहीं जो गरीब है। दरिद्र वह है जो संतुष्ट नहीं है। जिसके हृदय में और पाने का भाव लगातार है, वह दरिद्र है। कृपण वह है जो केवल लेना जानता है, देना नहीं जानता। उन्होंने कहा कि परमात्मा से अपनी प्रीत जोड़ने के लिये किसी सामग्री या संपत्ति की आवश्यकता नहीं है, केवल हृदय के भाव चाहिये। श्री पार्श्वनाथ परमात्मा की प्रतिष्ठा से हमें यह सीख लेनी है कि हमें अपना भविष्य स्वयं को तय करना है। अभी से अपने भविष्य की पोथी लिखना प्रारंभ करो। और हमारा भविष्य लिखने वाला और कोई व्यक्ति नहीं है। हम ही अपने आचरण और व्यवहार से अपना भविष्य लिखते हैं। यह तो तय है कि हम यहॉं सदा नहीं रह सकते। हमें एक दिन यहॉं से जाना होगा। पर जाने से पहले जहॉं जाना है, उसका निर्णय कर लेना चाहिये।
उन्होंने अपने वर्तमान गतिविधियों की चर्चा करते हुए कहा कि सुबह उठने के साथ तन, मन की सक्रियता प्रारंभ हो जाती है। हाथ काम करने लगते हैं… आँखें देखना प्रारंभ करती है… हृदय भावनाओं के प्रवाह में बहना प्रारंभ करता है…. दिमाग सोचना प्रारंभ करता है… मन निर्णय लेना शुरू करता है…। लेकिन ये समस्त क्रियाऐं संसार और परिवार से संबंधित होती है।
उन्होंने कहा कभी मैंने अपने मन को अपने बारे में सोचने का निर्देश दिया। मैं अपने बारे में कब सोचूंगा। मुझे अपने भविष्य के बारे में सोचने का कोई अवकाश नहीं है। मैं अपने झूठे वर्तमान में इतना उलझ गया हूँ कि मुझे अपने यथार्थ भविष्य के बारे में सोचने का समय नहीं है। यह तो तय है कि मेरा वर्तमान ही मेरे भविष्य का निर्माण करता है। पर यह वाक्य यदि मेरे रोम-रोम में उतर गया होता तो मैं चिंतन की दिशा दूसरी करता। फिर मैं ऐसा नहीं सोचता कि जैसा मेरा वर्तमान होगा, वैसा मेरा भविष्य होगा। तब मैं सोचता कि मुझे अपना भविष्य जैसा बनाना है, उसके अनुरूप मुझे अपने वर्तमान बनाना है। फिर मेरा वर्तमान भविष्य के लक्ष्य से बनेगा। तब मैं अपने वर्तमान के प्रति सावधान हो जाऊँगा क्योंकि मेरे दिमाग में भविष्य घूम रहा होगा। भविष्यलक्षी वर्तमान बनाना, जीवन जीने की कला है। इस मौके पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।

Nahar Times News

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