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बेशक “एक पेड़ मां के नाम” लगाओ लेकिन साथ में कटते पेड़ों और उजड़ती हरियाली को भी बचाओ

दिन के उजाले में कटाई और रात के अंधेरे में होता अवैध परिवहन जिले को बना रहा रेगिस्तान

नाहर टाइम्स@शाजापुर (मंगल नाहर )।
बेशक एक पेड़ मां के नाम लगाओ लेकिन साथ में कटते पेड़ों और उजड़ती हरियाली को भी बचाओ। जी हां हर साल की तरह इस साल भी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस धमाकेदार आयोजनों के साथ मनाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करने वाले जिम्मेदारों के लिए ये अत्यंत चिंतन का विषय है कि अपने शुरूआती दौर से ही पर्याप्त वनसम्पदा से परिपूर्ण रहा शाजापुर जिला वर्तमान समय में हरियाली के दुश्मनों की बुरी नजर और प्रशासनिक लापरवाही के चलते धीरे-धीरे अपनी इस पुरानी पहचान को खोता नजर आ रहा है। हरियाली के हत्यारे दिन के उजाले में बेधड़क वृक्षों की कटाई करके रात्रि के समय निडरतापूर्वक उसका परिवहन करते देखे जा सकते हैं और जिम्मेदार उनके इस अवैध कृत्य पर खामोशी के साथ हाथ बांधे बैठे हुए हैं। परिणाम स्वरूप एक तरफ एक पेड़ मां के नाम की मुहिम पर्यावरण दिवस पर पूरे दम से साकार रूप लेती नजर आती है वहीं दूसरी तरफ वन सीमा को जड़ से समाप्त करने का कुटिल षडयंत्र रचने वाले कतिपय स्वार्थी लोगों की लालचभरी कुल्हाड़ी अपने मंसूबों में हर रोज कामयाब होती दिखाई देती है।  
गौरतलब है कि शासन-प्रशासन द्वारा पर्यावरण संरक्षण, संवर्धन और उससे संबंधित विभिन्न कार्यों के लिए हर साल हजारों-लाखों रूपये की धनराशी पानी की तरह बहाई जाती है लेकिन छोटे-बड़े आयोजनों में पौधे रौंपने के बाद जिम्मेदारों द्वारा उन पर उचित ध्यान नही देने के चलते वे सुख जाते हैं। इसके अतिरिक्त क्षैत्र के वर्षों पुराने पेड़ों पर हरियाली के दुश्मनों द्वारा चलाई जा रही लालची कुल्हाड़ी से बड़ी मात्रा में वन सम्पदा को भारी क्षति पहुंच रही है जिसके चलते पर्यावरण को भी खासा नुकसान हो रहा है। देखने में आता है कि अवैध वृक्ष कटाई के काले कारोबार को संचालित करने वाले नगर से प्रतिदिन ट्रैक्टर-ट्राली में अवैध लकड़ियों का परिवहन कर उन्हें आरामशीन तक पहुंचा रहे हैं लेकिन संबंधित वन विभाग के जिम्मेदार नुमाइंदों की सुस्त व लापरवाहीपूर्ण कार्यप्रणाली के चलते उन पर किसी तरह का शिकंजा नहीं कसा जा रहा है और हरे पेड़ों की कटाई निरंतर जारी है। पौधारोपण में आमलोगों की अरूचि तथा निरंतर होने वाली वृक्षों की कटाई के कारण क्षैत्र में हरियाली का स्तर निरन्तर नीचे गिरता जा रहा है और जिला प्रशासन व संबंधित विभाग बेजुबान पेड़ों की अकाल मौत को ना जाने किन कारणों के चलते खामोशी के साथ देखता और सहता जा रहा है।
“लकड़ी के अवैध कारोबारियों की सक्रियता प्रशासन के लिए चुनौती”
इन दिनों नगर में लकड़ी माफिया गिरोह पुलिस की कार्यशैली की तर्ज पर सक्रिय है। जिस तरह चोर और गुंडों को दबोचने के लिए पुलिस तयशुदा स्थानों पर अपने जवानों की तैनाती के साथ निगरानी रखती है कुछ इसी तर्ज पर लकड़ी माफियाओं के सदस्य लकड़ी परिवहन के समय सक्रिय रहते हैं, और मोबाईल से लोकेशन पर निगाह रखते हैं। कब और कैसे लकड़ी से लदी अवैध ट्राली को नगर से निकालकर तय शुदा स्थल पर पहुंचाया जाए इसके लिए बकायदा मोटर साईकिल सवार दो-तीन लकड़ी माफिया सदस्य चौराहे की स्थिति का जायजा लेकर मोबाईल से रास्ता क्लीयर होने या नहीं होने का संदेश देते हैं। परन्तु इन सब बातों से अनजान बना वन विभाग का सुस्त व नाकारा अमला अपने ड्युटी समय के बाद बेफिक्र होकर अपना कर्तव्य निभाता नजर आता है।
“अनियंत्रित आरामशीनें और बेधड़क वृक्ष कटाई”
वृक्षों की कटाई के उपरान्त उसकी लकड़ी का विभिन्न कार्यों में प्रयोग करने के लिए क्षैत्र में मौजूद आरा मशीनों तक माल को पहुंचाया जाता है जहां प्रशासन द्वारा तय मात्रा से अधिक लकड़ी का दोहन करना अवैध कार्य की श्रैणी में आता है। क्षैत्र में लगातार बेरोकटोक होने वाली वृक्षों की कटाई के उपरान्त लकड़ी कहां जाती है? और उसका क्या होता है? यह आवश्यक कार्यवाही एवं जांच का विषय है लेकिन इसके साथ ही नियमानुसार आरा मशीनों पर भी प्रशासन द्वारा समय-समय पर निरीक्षण व जांच कार्यवाही करते हुए नियंत्रण रखा जाना चाहिए। किन्तु एसा होता नहीं है और हरियाली के दुश्मनों से मिलीभगत के चलते आरामशीनों पर नियमानुसार निरीक्षण कार्यवाही से संबंधित विभाग दूरी बनाए रखता है परिणाम स्वरूप वनसम्पदा की लगातार होती हानि पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा देती है। 
“इसलिए पूरा नहीं होता पर्यावरण संवर्धन का सपना”
वर्षा ऋतु के आगमन के साथ खुले स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित करके तथा जनप्रतिनिधि, अधिकारी एवं गणमान्यजनों की भीड़ एकत्रित करके पौधारोपण करने वाली शासकीय व निजी संस्थाएं मात्र अखबारों की कटिंगें तैयार करने तक अपनी भूमिका सक्रियतापूर्वक निभाती दिखाई देती है। इसके बाद रोपे गए पौधों की देखरेख और उनके उचित संरक्षण की किसी को कोई परवाह नहीं होती। परिणाम स्वरूप एक जनउपयोगी वृक्ष बनने के पहले ही अपने शुरूआती दौर में पौधे मवेशियों के भक्षण के काम आ जाते हैं और पर्यावरण संवर्धन का सपना धरा रह जाता है।
“कोई संस्था नहीं उठाती आवाज”
पौधारोपण के नाम पर जोर-शोर से प्रचार-प्रसार और दिखावा करने वाली शासकीय व निजी संस्थाओं ने आज तक एसा मौका नहीं आया जब अवैध वृक्ष कटाई की रोकथाम और हरियाली का अंत करने वालों के खिलाफ आवाज उठाई हो। पौधारोपण के बाद उचित देखभाल नहीं होने से नष्ट पौधे और लगातार होती वृक्ष कटाई पर जिम्मेदारों की खामोशी के साथ संस्थाओं द्वारा भी मौन रहना लकड़ी के अवैध कारोबारियों के हौंसलों को बढ़ाने का बड़ा कारण है।
Nahar Times News

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