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संविधान निर्माता सभा के 4 सदस्यों में जैन भाई मास्टर बलवंतसिंह भंसाली भी थे शामिल

खरतरगच्छाधिपति ने बताया देश की आजादी में जैन समाज के योगदान का गौरवशाली इतिहास

नाहर टाइम्स@सूरत (गुजरात)। अवंति तीर्थोद्वारक, युग दिवाकर मोकलसर नंदन, केयूप – केएमपी प्रणेता, खरतरगच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीजिन मणिप्रभ सूरीश्वर जी म.सा. ने नियमित प्रवचन माला के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में अपने विशेष प्रवचन के दौरान दौरान देश की आजादी में जैन समाज के गौरवशाली इतिहास का उल्लेख करते हुए कई रोचक प्रसंगों का वर्णन किया। 

हीरा नगरी सूरत गुजरात में कुशल कांति खरतरगच्छ जैन संघ के तत्वावधान में चल रहे चातुर्मास के विशेष प्रवचन में खरतरगच्छाधिपति ने कहा कि आज का दिन देश और दुनिया के सभी लोगों को याद है कि 15 अगस्त के दिन भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी। लेकिन आज यह किसी को भी याद नहीं है कि उस दिन तिथि क्या थी, वार कौन सा था, विक्रम संवत कोनसा था ?? उन्होंने बताया कि भारत की आजादी के दिन विक्रम संवत 2004 था, उस वर्ष चातुर्मास पांच माह का था, तब श्रावण दो थे और पर्युषण पर्व की आराधना चल रही थी। श्रावण दो होने से दूसरे श्रावण मास में पर्युषण थे, उस दिन चौदस का दिन और शुक्रवार था जब देश आजाद हुआ था। उस दिन सभी सताईस नक्षत्रों में सर्वश्रेष्ठ नक्षत्र पुष्य नक्षत्र का योग था। तब 14 अगस्त की अर्द्ध रात्रि को अंग्रेजों का झंडा हटा दिया गया था और देश आजाद हो गया था। उस आजादी की हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। जब आजादी के दिन पहले ही पाकिस्तान की घोषणा हो गई कि जो भी मुस्लिम हैं वो पाकिस्तान चले जाएं एवं जो पाकिस्तान के क्षेत्र में हिंदू है वो भारत आ जाएं।
आजादी का यह जश्न खून की नदियों में तब्दील हो गया था चारों तरफ का वातावरण हिंसात्मक हो गया था‌। उस समय भारत के कई हिंदू परिवारों के साथ – साथ जैन परिवार पाकिस्तान के मुल्तान, हाला आदि क्षेत्रों में रहते थे। उस समय पाकिस्तान के जैन समाज में जैन आचार्य श्रीजिन वल्लभसूरीजी का चतुर्मास चल रहा था, तो जैन समाज के लोगों ने आचार्य श्री से कहा कि पहले आप सुरक्षित रूप से भारत चले जाओ, लेकिन आचार्य श्री ने जैन समाज से कहा कि पहले मेरे जैन परिवार जाएंगे फिर में जाऊंगा। फिर एक सभा आयोजित की गई जिसमें सभी जैन लोगों को इकट्ठा किया और वार्तालाप कर सभी को ट्रकों में भरकर भारत भेजना शुरू किया गया। सबके बाद अंत में आचार्यश्री खुद भारत के पंजाब राज्य में सुरक्षित पहुंच गए। उस समय मुल्तान और हाला गांव के लोग अपनी संपत्ति, धन, माल, पैसा सब कुछ छोड़कर भारत आए थे, लेकिन उन्होंने वीतराग प्रमात्मा के प्रति श्रद्धा के भाव नही छोड़े। जितनी प्रतिमा, आदि थी सब साथ लेकर ही भारत आए थे। उनका सोचना था की संपत्ति तो पुण्य से फिर कमा लेंगे लेकिन अरिहंत परमात्मा और संस्कृति पुनः नही मिलेगी। उस समय मुल्तान एवं हाला से लाई हुई प्रतिमा आज भी मुंबई और ब्यावर में विराजमान है। मुल्तान एवं हाला के परिवार दादा गुरुदेव के प्रति श्रद्धा रखने के कारण आज देश भर में फैले हुए हैं। दादा गुरुदेव श्री जिन कुशल सूरीजी का समाधि स्थल भी वर्तमान में देराउर पाकिस्तान में है। आज के दिन हमें उन शहीदों को याद करना है जिन्होंने भारत की आजादी हेतु अपना सब कुछ बलिदान कर दिया था। उस समय की आजादी और आज की आजादी का महत्व बदल गया है आज हमे देश के प्रति पूर्ण रूप से अंतर्मन के भावों के साथ नैतिकता के पाठ को याद करना है। देश के संविधान बनाने में जो डाक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी। उसके चार प्रमुख लोगों में से एक जैन भाई थे मास्टर बलवंतसिंह भंसाली जो मूलतः उदयपुर के निवासी थे वो भी खरतरगछ की परम्परा को मानने वाले दादा गुरुदेव के परम भक्त थे। बाद में राजस्थान सरकार के पहले मंत्रिमंडल में उनको मंत्री पद भी दिया गया था। संघ अध्यक्ष ओम प्रकाश मंडोवरा ने बताया कि इस अवसर पर गुरु गौतम स्वामी का पूजन रखा गया। जिसमें कई परिवारों ने भाग लिया संघ में कई तरह की विविध तपस्या जारी है और देश भर से मेहमानों का आना जारी है।

Nahar Times News

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