स्पोटर्स क्लब का कमरा या अय्याशी का अड्डा…
नाहर टाइम्स@शाजापुर। वैसे तो सरकारी विभागों के भवनों का उपयोग शासकीय कार्यों के लिए किया जाता है लेकिन कभी-कभी जिम्मेदारों की निष्क्रियता और उनका अपने अधीनस्थों के प्रति लापरवाहीपूर्ण रवैया कुछ स्थानों के सरकारी भवनों को अय्याशी के अड्डों में भी तब्दिल कर दिया करता है। जहां रात का अंधेरा गहराते ही मदहोशियोंभरी पार्टियां शुरू हो जाती है और मस्ती के जाम छलकने लगते हैं। इस पर भी आश्चर्य की बात यह हाती है कि जहां यह महफिलें सजती हैं वहां के आस-पड़ोसियों को इसकी जानकारी होती है लेकिन जिम्मेदार इस अनैतिक करतूत की खबर से खुद को पूरी तरह अनजान बताते हैं।
रात के अंधेरे में मस्ती की महफिल सजने की ताजा खबर नगर के बैरछा मार्ग स्थित एक सरकारी विभाग के उस कमरे से आई है। जिसका उपयोग तो स्पोर्टस क्लब के रूप में होना बताया जाता है लेकिन रातों के अंधेरे में यहां जाम छलकने के साथ शौकीनों की पार्टियां चलती है। जिसकी खबरें अब खूब सूर्खियां बटोर रही है। चंद दिनों पहले ये खबरें उस वक्त सच की कगार तक पहुंच भी गई, जब स्पोर्टस क्लब के कमरे में चल रही पार्टी की खबर कमरे के बाहर पहुंच गई और खासा माहौल भी बना। हालांकि महफिल में शामिल शौकिनों ने अपनी लाज बचाने के लिए इस खबर को गायब करने और दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन फिर भी वे इसे सुर्खियां बनने से बचा नहीं पाए और स्पोर्टस क्लब की हकीकत उन जिम्मेदारों तक भी पहुंच गई जो शायद सच जानकार भी अनजान बने रहे। जब उक्त विभाग के जिम्मेदार अधिकारी से इस मामले की जानकारी ली गई तो उन्होंने बड़े ही बचाव वाले ढंग से खुद का पल्ला झाडक़र जवाब देते हुए यह तो स्वीकार कर लिया कि स्पोर्टस क्लब के कमरे में पार्टी होने की खबर तो उन्हें मिली थी और इसकी तस्दिक भी उन्होंने करवाई लेकिन उस वक्त वहां कोई नहीं मिला। यानि की साहब बहादुर की कार्रवाई के पहले ही शौंकिन जमात मौका ए वारदात से बोरिया-बिस्तर बांधकर गायब हो चुकी थी और खाली कमरा खबर खोखली होने की गवाही दे रहा था। इसके विपरित विश्वस्त सूत्रों की मानें तो उस रात की सच्चाई कुछ और थी कमरे में बकायदा शौकिन अपने जामों के साथ पार्टी का मजा ले रहे थे और पोल खुलते ही वे खुद को बचाने की जुगाड़ में लग गए। हालांकि ठोस सबूतों को समय रहते गायब करके शौकिन इस बार तो बच गए लेकिन इस सेंधमारी ने भविष्य में कभी भी इस तरह की मस्ती के लिए उनके सामने चुनौति पैदा कर दी है। इधर सोचने वाली बात यह भी है कि स्पोर्टस क्लब के कमरे में जाने का अधिकार किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं है तो फिर कमरे के अंदर महफिलें सजाता कौन है और जो ये महफिलें सजाते हैं उनसे विभाग के साहेब बहादुर अब तक अनजान कैसे हैं। फिलहाल स्पोर्टस क्लब का कमरा बेहद संवेदनशील हो चुका है जहां अब होने वाली किसी भी तरह की अनैतिक गतिविधि पर सभी की निगाहें टिकी हुई है।